तोल मोल कर बोल
अपने लिये खरीदने में फायदा हो तो
किलो की चीज को छटांक बोल
बेचना हो बाजार में तो
अपनी छटांक की चीज का लगा एक किलो के मोल
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आजादी में सांस लेने वालों के
अंदाजे-बयां कुछ और होता है
उनकी गुलामी से अपने अपने को मत तोल
सौदागर हो तो बाजार में करो सौदा
गलियों से हो जा गोल
बुलंद आवाज नहीं हो सकती
गुलामी में बहुत जल्दी थकती
अपनी सोच की गुलामी को कब तक
छिपाओगे
दूसरे की भाषा बोलते जाओगे
जंजीरे साफ नजर आ जाती हैं
गुलामों के बंधे हाथ देख जंजीरों से
खुल जायेगी पोल
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
टिप्पणियाँ
दूसरे की भाषा बोलते जाओगे
जंजीरे साफ नजर आ जाती हैं
गुलामों के बंधे हाथ देख जंजीरों से
खुल जायेगी पोल
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बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ.
आलोक सिंह “साहिल”
दूसरों की भाषा बोलना ही गुलामी का आरंभ है शायद !